लोकतंत्र
‘‘मैंने ऐसे लोकतंत्र की परिकल्पना की है, जिस लोकतंत्र की स्थापना अहिंसा से हुई हो, जहां सबके लिए समान अवसर हों। हर कोई अपना मालिक हो। मैं ऐसा लोकतंत्र बनाने के संघर्ष में शामिल होने के लिए आज आपको आमंत्रित करता हूं’’—
महात्मा गांधी, 8 अगस्त, 1942, को अपने ‘भारत छोड़ो’ भाषण के दौरान
‘‘लोकतंत्र अच्छा है। मैं ऐसा इसलिए कहा रहा हूं कि दूसरी व्यवस्थाएं बहुत बुरी हैं। इसलिए हम लोकतंत्र स्वीकार करने को बाध्य हैं। इसमें अच्छाईयां भी हैं और बुराईयां भी हैं। लेकिन यह कहना कि लोकतंत्र से सभी समस्याओं का समाधान हो जायेगा पूरी तरह से गलत है। समस्याओं का समाधान समझ और कठोर परिश्रम से होता है।’’—
पंडित जवाहर लाल नेहरु
‘‘लोकतंत्र का मतलब सिर्फ सरकार नहीं है। यह प्राथमिक तौर पर एक साथ जीने और साझा अनुभवों का एक जरिया है। यह (लोकतंत्र) हमारे साथ के लोगों का आदर और सम्मान करने के रवैये की अभिव्यक्ति है।’’—
बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर
‘‘लोकतंत्र सिर्फ प्रभावी लोगों की नहीं बल्कि प्रत्येक मनुष्य की आध्यात्मिक संभावनाआंे में एक भरोसा है।’—
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
‘‘जिन देशों में लोकतंत्र का जन्म हुआ आज वे सब भारत से काफी समृद्ध हैं। संदेह करने वाले कह सकते हैं कि भारत के लिए अभी सामाजिक लोकतंत्र की बात करना जल्दबाजी है। लेकिन यही गलत धारणा है। जिन-जिन देशों में सामाजिक लोकतंत्र ने जड़ें जमाईं, उन सबमें यह पहले सपना ही था। लेकिन यह खड़ा हुआ धीरे-धीरे, कई पीढ़ियां लगीं इसमें। आर्थिक विकास से इसे ताकत मिली। बदले में इससे आर्थिक विकास टिकाऊ बना। मानव विकास के अवसर पैदा हुए, सामाजिक समरसता और एकता बनी, बौद्धिक और राजनीतिक स्तर पर एक राय बनी। उन देशों में सामाजिक लोकतंत्र न सिर्फ अच्छी राजनीति साबित हुआ बल्कि बेहतर अर्थशास्त्र भी साबित हुआ। इसने सरकार, कारोबारियों और मजदूरों को एक मंच पर लाकर साझा दृष्टिकोण और संवेदशील समाज विकसित करने का रास्ता साफ किया।’’—
श्रीमती सोनिया गांधी, 2010 में 10वें इंदिरा गांधी सम्मेलन को संबोधित करते हुए
राष्ट्रीयता
‘‘जंग का मैदान आपके सामने है, भारत का झंडा आपको इशारे से बुला रहा है और आजादी आपके आने का इंतजार कर रही है। कौन बचेगा जब भारत नहीं रहेगा? कौन मरेगा जब भारत जिंदा रहेगा?’’ —
12 मार्च, 1931 को पंडित जवाहरलाल नेहरु लोगों से महात्मा गांधी की दांडी यात्रा में शामिल होने का आह्वान करते हुए
‘‘हम सबको यह याद रखना चाहिए कि हम सब अपनी भारत माता की संतान हैं। सच्चाई यह है कि मैंने हमेशा केवल इसी भावना से काम किया है कि मैं भारतीय हूं और मुझे अपने देश और देशवासियों के लिए काम करना है। चाहे मैं हिंदू हूं, मुस्लिम हूं, पारसी हूं, ईसाई हूं या फिर किसी और पंथ का हूं, लेकिन इन सबके पहले मैं भारतीय हूं। हमारा देश भारत है। हमारी राष्ट्रीयता भारतीय है।’’ —
दादाभाई नौरोजी, 1893 में लाहौर में कांग्रेस अधिवेशन के दौरान अध्यक्षीय भाषण में
‘‘इस मिट्टी में कुछ खास है, जो काफी सारी चुनौतियों के बावजूद हमेशा से ही महान् आत्माओं की धरती रही है।’’ —
सरदार वल्लभभाई पटेल
‘‘हमारे जैसे विशाल देश में लोग विभिन्न धर्मों का पालन करते हैं, विभिन्न भाषाएं बोलते हैं, विभिन्न पोशाक पहनते हैं और अलग-अलग रीति-रिवाजों का पालन करते हैं; लेकिन हम सब एक देश हैं। आजादी के लिए संघर्ष का हमारा इतिहास और भविष्य के विकास में हमारा यकीन हम सबको आपस में जोड़ता है।’’—
श्री लाल बहादुर शास्त्री
‘‘भारत एक प्राचीन देश है लेकिन युवा राष्ट्र है। हम अधीर हैं। मैं अधीर हूं और मेरे पास भारत के लिए एक सपना है- मजबूत, आजाद और आत्मनिर्भर…’’—
श्री राजीव गांधी, 1985 में अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित करते हुए
धर्मनिरपेक्षता
‘‘मैं इस नतीजे पर काफी पहले पहुंच गया था कि सभी धर्म सच्चे हैं और सबमें कुछ न कुछ कमियां हैं। जबकि मैं अपने धर्म को मानता हूं लेकिन मुझे दूसरे को धर्मों को भी हिंदू धर्म जितना ही प्रिय समझना चाहिए। हमें मन में यह प्रार्थना करनी चाहिए कि हिंदू एक अच्छा हिंदू, मुसलमान एक अच्छा मुसलमान और ईसाई एक अच्छा ईसाई बने…’’—
महात्मा गांधी, (यंग इंडिया, 19 जनवरी, 1928)
‘‘हम भारत में धर्मनिरपेक्ष राज की बात करते हैं। लेकिन संभवतः हिंदी में ‘सेक्यूलर’ के लिए कोई अच्छा शब्द तलाशना भी मुश्किल है। कुछ लोग समझते हैं कि धर्मरिपेक्ष का मतलब कोई धर्मविरुद्ध बात है। यह बिल्कुल भी सही नहीं है। इसका मतलब तो यह है कि एक ऐसा राज जो हर तरह की आस्था का बराबर आदर करता हो और सबको समान अवसर देता हो; देश के तौर पर वह खुद को किसी खास आस्था या धर्म से न जुड़ने दे। ऐसा होने पर ही राजधर्म बनता है।’’—
पंडित जवाहर लाल नेहरु (रघुनाथ सिंह की पुस्तक ‘धर्मनिरपेक्ष राज’ की भूमिका में)
‘‘धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र हमारे देश के जुड़वां स्तंभ हैं, ये हमारे समाज की बुनियाद हैं। सदियों से हमारे यहां के लोग बड़ी संख्या में धर्मनिरपेक्षता, धार्मिक सहिष्णुता, शांति और मानवता के सिद्धांतों के साथ चले हैं।’’—
श्रीमती इंदिरा गांधी, 22 दिसंबर, 1967 को भारतीय संसद में भाषण देते हुए।
‘‘धर्मनिरपेक्षता हमारी राष्ट्रीयता के मूल में है। धर्मनिरपेक्षता वह नहीं है जैसी इसकी परिभाषा अंग्रेजी शब्दकोष में दी गई है, वहां इसे ‘अधार्मिक’ और ‘धर्मविरोधी’ बताया गया है बल्कि धर्मनिरपेक्षता तो वह है जिसकी व्याख्या पंडित जी ने सर्वधर्म समभाव के तौर पर की थी, जो हमारे देश में हर धर्म को आगे बढ़ने की अनुमति देता है। हर समुदाय, हर जाति, हर भाषा बोलने वाले लोगों को विकसित होने, समृद्ध बनने और आगे बढ़ने का अवसर मिले, सभी की बुनावट एक भारत या यूं कहें कि एकीकृत भारत की हो। भारत सिर्फ एक भौगोलिक आकृति और राजनीतिक बनावट नहीं है। भारत का इतिहास हजारों साल पुराना है; सरहदें बदलती रही हैं, राजनीति बदलती रही है, लेकिन भारत बना रहा है। यह एक विचार है, यह एक सोच है, यह एक आंतरिक आध्यात्म है, जो भारत को बनाता है।’’ —
श्री राजीव गांधी, 9 अक्टूबर, 1986 को ‘सांप्रदायिकता के खिलाफ भारत का संघर्ष’ विषय पर आयोजित परिसंवाद में बोलते हुए
समावेशी विकास
‘‘मैं आपको एक मंत्र देता हूं। आप जब भी संशय में हों या फिर जब आपका अहंकार काफी ज्यादा तो ये काम कीजिए। आप ऐसे सबसे गरीब या कमजोर व्यक्ति के चेहरे याद कीजिए जिसे आपने देखा हो और फिर खुद से पूछिए कि जो कदम आप उठाने जा रहे हैं, वो क्या उसके किसी काम का है। क्या उससे उसे कुछ फायदा होगा? क्या उससे उसकी अपनी जिंदगी या भाग्य पर पकड़ बढ़ेगी? दूसरे शब्दों में, क्या उससे भूखे और आध्यात्मिक तौर पर विपन्न लाखों लोगों को स्वराज हासिल हो पाएगा? तब आपकी शंका का समाधान हो जाएगा और वो अपने आप दूर हो जायेंगी।’’—
महात्मा गांधी
‘‘हमने राजनीतिक आजादी तो हासिल कर ली लेकिन हमारी क्रांति पूरी नहीं हुई है और यह अब भी यह चल रही है, ऐसी राजनीतिक आजादी किसी को कभी संतुष्ट नहीं कर सकती, जो लोगों के जीने और खुश रहने के अधिकार को सुनिश्चित न करती हो, और ऐसा केवल आर्थिक विकास के जरिए ही हो सकता है। इसलिए हमारा पहला काम है अपने लोगों का जीवन स्तर
सुधारना, उन सारी बाधाओं को दूर करना जो देश के आर्थिक विकास के रास्ते में आती हैं। हमने भारत की बड़ी समस्या, जो आज एशिया की प्रमुख समस्या बन गयी है, कृषि समस्या को सुलझाया है। जमीन को लेकर कायम सामंती व्यवस्था बदली है, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि खेतों में मेहनत करने वाले के पेट में अनाज जाए और उसे खेती की जमीन का मालिकाना भी हासिल हो। एक ऐसे देश में जिसका सबसे बड़ा उद्योग आज भी कृषि है, वहां सुधार के इस तरह के कदम न सिर्फ लोगों की भलाई के लिए जरूरी है बल्कि समाज के स्थायित्व के लिए भी जरुरी हैं।’’—
पंडित जवाहरलाल नेहरु, 13 अक्टूबर, 1949 को अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित करते हुए
‘‘आर्थिक मसले हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि हमें अपने सबसे बड़े दुश्मनों, गरीबी और बेरोजगारी से लड़ना चाहिए। चाहे वह कृषि का मसला हो या फिर औद्योगिक विकास का, बुनियादी बात यह है कि इससे काफी लोगों को फायदा होगा।’’—
श्री लाल बहादुर शास्त्री
‘‘विकास का मतलब केवल कारखाने, बांध और सड़कें बनाना नहीं हैं। विकास का संबंध लोगों से है। लक्ष्य लोगों की भौतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संतुष्टि है। मानव कारक विकास में सबसे अहम है।’’—
श्री राजीव गांधी
‘‘हम संसद और विधानसभाओं में अधिक से अधिक युवाओं, महिलाओं और आदिवासियों को देखना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि व्यवस्था को साफ बनाने के लिए अधिक से अधिक युवा राजनीति में आएं। हम युवाओं को सशक्त बनाए बगैर विकास नहीं कर सकते। हमारा देश तभी आगे बढ़ेगा, जब कानून बनाने वालों में युवाओं और महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी।’’—
श्री राहुल गांधी, 17 अक्टूबर, 2013 को ग्वालियर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए
सामाजिक न्याय
‘‘यह कहना भगवान को न मानने जैसा है कि कोई भी व्यक्ति अपने जन्म की वजह से अछूत, अलग और अदृश्य हो जाता है।’’—
महात्मा गांधी
‘‘जब तक आपको सामाजिक आज़ादी नहीं मिलती तब तक कानून से मिली किसी भी आज़ादी का आपके लिए कोई मतलब नहीं है।’’—
बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर
‘‘स्वतंत्र होने के लिए महिलाओं का खुद यह महसूस करना जरुरी है कि वे आज़ाद हैं, पुरुषों के मुकाबले में नहीं बल्कि खुद की क्षमताओं और व्यक्तित्व के संदर्भ में।’’—
श्रीमती इंदिरा गांधी, ‘ट्रू लिबरेशन ऑफ वूमन’, 26 मार्च, 1980 को नयी दिल्ली में ऑल इंडिया वूमंस कांफ्रेंस बिल्डिंग कॉम्प्लेक्स के उद्घाटन के अवसर पर
‘‘हम चाहते हैं कि सब लोग मिलकर एक नये भारत की ओर आगे बढ़ें। कोई भी जाति, पंथ, धर्म या क्षेत्र के आधार पर पीछे नहीं छूटना चाहिए और हम जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के उन विचारों को लेकर आगे बढ़ रहे हैं जिसमें भारत को सामाजिक न्याय पर आधारित आधुनिक राष्ट्र बनाने का सपना देखा गया था।’’—
श्रीमती सोनिया गांधी, 30 सितंबर, 2013 को थिरुवनन्तपुरम में
‘‘क्या विकास से भी महत्त्वपूर्ण कोई चीज है? हां, इससे भी महत्त्वपूर्ण है: इज्जत। कोई भी विकास बगैर इज्जत के नहीं हो सकता। सरकार का मतलब क्या है? इसका मतलब है हर नागरिक की इज्जत सुनिश्चित हो: प्रत्येक महिला, युवा, बुजुर्ग, दलित और आदिवासी।’’—
श्री राहुल गांधी, 17 अक्टूबर, 2013 को ग्वालियर की एक जनसभा में भाषण के दौरान